इस गुजरते एक साल में, तुझसे इक दफा गुफ्तगू की आस। इस गुजरते एक साल में, तुझसे इक दफा गुफ्तगू की आस।
हे जननी जन्मभूमी माँ शत्-शत् नमन करता हूँ... हे जननी जन्मभूमी माँ शत्-शत् नमन करता हूँ...
अपनापन अपनापन
रंग भी कितने अजीब होते हैं यूँ तो ये भिन्न भिन्न होते हैं! रंग भी कितने अजीब होते हैं यूँ तो ये भिन्न भिन्न होते हैं!
सब धर्मो के सभी जाति के , भेदभाव को विसारकर। सब धर्मो के सभी जाति के , भेदभाव को विसारकर।
खुश नही हूं... खुश नही हूं...